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महाभारत की रचना किसने की ?

महाभारत की रचना किसने की ?

महाभारत की रचना किसने की ?

Mahabharat Ki Rachna Kisne Ki :-  ” महाभारत ” एक ऐसा महाकाव्य है, जो कि बहुत सारे काव्यों को अपने अंदर समाए हुए हैं।

जिस श्रीमद्भगवद्‌गीता के बारे में हम सब सुनते हैं और उसे पढ़ने के बाद में अपने आप को बुद्धिमान समझते है, वह श्रीमद्भगवद्‌गीता भी महाभारत का एक छोटा सा अंश है।

यदि हम कहे कि महाकाव्य ” महाभारत ” भारत के सभी ग्रंथों और उपन्यासों में सबसे बड़ा है, तो यह गलत नहीं होगा।

लेकिन क्या आप जानते हैं, कि इस महाकाव्य की रचना किसने की थी ? OR Mahabharat Ki Rachna Kisne Ki ? यदि आप नहीं जानते तो कोई बात नहीं, आज के लेख में हम आपको बताएँगे की महाभारत की रचना किसने की थी ?

इसी के साथ हम आपको महाभारत के बारे में और भी कई रोचक जानकारियां देंगे, जो आपके लिए जानना जरूरी है, और अंत में हम आपको महाभारत के कुछ हैरतअंगेज कर देने वाले तथ्य बताएँगे। तो चलिए शुरू करते हैं।

महाभारत क्या है ? | Mahabharat In Hindi

महाभारत एक ऐसा महाकाव्य है, जो भारत के पुरातत्व काल में हुए एक महाभारत के युद्ध को तथा युद्ध के होने की वजह, उससे पहले की कहानियां, तथा युद्ध के होने के बाद की घटनाएँ और उसके परिणाम के बारे में सारी जानकारियां देता है।

इस महाकाव्य में भगवान श्रीकृष्ण की उत्पत्ति से लेकर के उनके बैकुंठ प्रस्थान तक की सारी जानकारी भी दी है।

इस महाकाव्य की रचना महर्षि वेदव्यास ने आज से हजारों साल पहले की थी। हालांकि इस बात का कोई भी प्रमाण नहीं है, कि महाभारत की रचना मुख्य और स्पष्ट तौर पर कब हुई थी।

लेकिन यह वही ग्रंथ है, जिसमें भगवान श्री कृष्ण ने गीता का ज्ञान और अपना उपदेश दिया था। यह वही महा ग्रंथ है, जिसकी रचना करने में महाभारत के सर्वश्रेष्ठ रचयिता महर्षि वेदव्यास को 3 वर्ष का समय लगा था।

महाभारत महाकाव्य के आदि पर्व (आदि नाम का अध्याय) के श्लोक नंबर 62 और 83 में इस बात का वर्णन किया गया है, कि किस प्रकार श्री वेदव्यास ने महाभारत की रचना करी थी।

ऐसा कहा जाता है कि महाभारत का महायुद्ध 18 दिन चला था, और उस समय एक भाट सारथी रण में योद्धाओं के साथ जाता था, और वह जो भी देखता था उसे एक पुस्तक में लिख देता था। महर्षि वेदव्यास ने भी वह पुस्तकें पढ़ी थी।

महाभारत की रचना किसने की ? | Mahabharat Ki Rachna Kisne Ki

महाभारत महाकाव्य की रचना महर्षि वेदव्यास जी ने करी थी।

लेकिन यह इतना सरल भी नहीं है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि महाभारत की रचना का श्रेय महर्षि वेदव्यास को दिया  जाता है, लेकिन एक तरीके से यदि रचना का अर्थ ‘ लिखना ’ होता है, तो महाभारत को वेदव्यास ने नहीं लिखा था।

महाभारत को वेदव्यास ने कहा था, मुंह से बोला था, लेकिन महाभारत नाम के महाकाव्य को लिखने वाले जो हाथ थे, वे स्वयं प्रथम पूज्य श्री गणेश जी के थे।

इसका एक कारण यह बताया जाता है, कि वेदों को पृथक करने के बाद में महर्षि वेदव्यास का ज्ञान इतना ज्यादा बढ़ चुका था, कि वह एकाग्र चित्त होकर के लिखने में लगभग असमर्थ हो गए थे।

उनकी बुद्धि इतनी विशाल,अनंत और विस्तारित हो गई थी, कि उन्हें एक ऐसे व्यक्तित्व की आवश्यकता थी जो उनके द्वारा मुंह से निकले गए शब्दों को एक किताब पर उतर सके और इसके लिए उन्हें एक ऐसे महाज्ञानी की आवश्यकता थी जो उन्हें द्वारा हर बोले गए शब्दों को समझ भी सके, जो पृथ्वी पर उपलब्ध नहीं था।

इसलिए महर्षि वेदव्यास जी ने भगवान ब्रहमा की सलाह पर, अपनी तपस्या की शक्ति से भगवान गणेश जी का आवाहन किया और उनसे निवेदन किया कि कृपया करके इस महाकाव्य को लिखने में उनकी मदद करे।

तब गणेश जी भी इस शर्त पर राजी हुए कि जब तक महाकाव्य पूरा नहीं हो जाता तब तक महर्षि वेदव्यास अपना बोलना बंद नहीं करेंगे। यह कहा जाता है कि इस महाकाव्य को लिखने में 3 वर्ष का समय लगा था।

लेकिन इसका मतलब यह नहीं था, की वेदव्यास लगातार तीन वर्षों तक बोलते रहे। जब भगवान गणेश जी ने अपनी शर्त रखी थी तब महर्षि वेदव्यास ने भी यह शर्त रखी थी कि गणेश जी भी उनके द्वारा बोले गए हर श्लोक और हर शब्द का अर्थ समझकर उसे सरल भाषा में लिखेंगे।

वेदव्यास कौन थे ? | Ved Vyas Kaun Hai 

ऊपर हमने जाना कि Mahabharat Ki Rachna Kisne Ki ? अब हम जानते है, कि वेदव्यास कौन थे ?

महर्षि वेदव्यास महाभारत के एक महत्वपूर्ण पात्र है। महर्षि वेदव्यास को शांतनु, जोकि महाबली भीष्म के पिता थे और पितामह भीष्म के नाम से जाने जाते थे, उन शांतनु का भाई माना जाता है, हालांकि यह रक्त संबंध नहीं था।

महर्षि वेदव्यास वह महान व्यक्ति थे, जिन्होंने महाभारत की रचना की तथा एक महान वेद को चार भागों में विभक्त करके ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद की रचना करी।

ऐसा कहा जाता है, कि महर्षि वेदव्यास जी ने चारों वेदों को पृथक किया था, यानी कि जो एक महान वेद था, जिसमें विश्व के सभी महाज्ञानियों ने अपने ज्ञान तथा अपने अनुभव को पुस्तकों में लिख कर के उसे एक ही सूत्र में बांधा था। उस एक महावेद को समझकर उसका सार निकलकर उसे चार श्रेणियों में विभाजित किया था। आज वे 4 श्रेणिया 4 वेदों के नाम से जानी जाती है।

महर्षि वेदव्यास का मूल नाम ” कृष्ण द्वैपयाना ” था उनकी माता जी का नाम ” सत्यवती ” तथा पिता का नाम ” पाराशर ” था।

महाजटिल वेद को चार भागों में विभक्त करने के बाद में महर्षि वेदव्यास का नाम वेदव्यास पड़ा था।अब आप सोच रहे होंगे कि उसका नाम यदि वेदों के पृथक करने के बाद ही उनका नाम वेदव्यास पड़ा था तो उनका पहले नाम क्या था ?

तो वेदों को पृथक  करने से पहले उनका नाम ” कृष्ण द्वैपयाना ” था। यह नाम महर्षि वेदव्यास के पिता पाराशर ने रखा था।

महाभारत महा ग्रंथ किसने लिखा ?

महाभारत महाकाव्य, श्री गणेश जी के कर-कमलों द्वारा लिखा गया था और महर्षि वेदव्यास के मुखारविंद से इसके शब्द बोले गए थे।

महाभारत के कुछ रोचक तथ्य | Fact About Mahabharat

ऊपर आपने जाना Mahabharat Ki Rachna Kisne Ki ? अब हम जानेंगे महाभारत से संबंधित कुछ रोचक तथ्य :-

  1. महाभारत की रचना महर्षि वेदव्यास ने की थी लेकिन महाभारत के महालेख को भगवान श्री गणेश ने लिखा था।
  2. महाभारत महाकाव्य संस्कृत में लिखा गया है।
  3. महाभारत महाकाव्य इतना बड़ा है, कि इसमें 1,10,000 से ज्यादा श्लोक है। यह बाइबल से 15 गुना ज्यादा बड़ा है।
  4. महाकाव्य में मनुष्य, जानवर, देवता, दैत्य, राक्षस सभी पात्र है।
  5. यह चमत्कारी और भयानक कहानियों से भरा हुआ है।
  6. जिस प्रकार रामायण का मुख्य केंद्र प्यार और त्याग है, उसी प्रकार महाभारत का मुख्य केंद्र सत्य और न्याय है।
  7. महाभारत हमें यह शिक्षा देती है, कि हमारे कर्म कभी भी हमारा पीछा नहीं छोड़ते।
  8. विश्व प्रसिद्ध श्रीमद्भगवद्‌गीता महाभारत का एक छोटा सा अंश है।
  9. यदि महाभारत को सही ढंग से समझा जाए तो इसमें तकरीबन 1 साल से अधिक समय लगेगा।
  10. महाभारत में कुल 18 अध्याय हैं और हर अध्याय को पर्व कहा जाता है।
  11. ऐसा कहा जाता है, कि महाभारत की रचना 5000 वर्ष से भी पहले हुई थी।
  12. वैसे तो पूरे ही महाभारत में सभी पात्रों का योगदान अतुलनीय है लेकिन फिर भी भगवान श्री कृष्ण, अर्जुन, भीष्म, कर्ण, भीम, दुर्योधन, इन सभी का योगदान सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है।
  13. महाकाव्य महाभारत की रचना के बाद में महर्षि वेदव्यास के शिष्य वैशंपायन ने राजा जनमेजय की सभा में इसका वाचन किया था। राजा जनमेजय और कोई नहीं बल्कि परीक्षित के पुत्र थे, तथा अभिमन्यु के पौत्र(पोते) थे। आपको याद हो तो अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को भगवान श्री कृष्ण ने ब्रह्मास्त्र से बचाया था। लेकिन उसके कर्मों की वजह से परीक्षित को यह श्राप मिला था कि कुछ ही समय बाद वह तक्षक सांप के डसने से मर जाएगा।
  14. अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए राजा जनमेजय ने एक सर्पयज्ञ करवाया था जिसमें उसने विश्व के सभी सांपों की बलि देना शुरू कर दिया था।

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